तपिश

तुम्हारी इबारत उस धीमी जली आग की तपिश सी है, जो इस सुन्न सर्द अंधेरी रात में मुझे जिंदा रखे हुए है। मगर न जाने क्यों इस मौसम को हमारा साथ रास नहीं आता। वो तरह-तरह के पैंतरे आज़माता है, मेरा आखिरी सहारा छिनने के लिए। वो भड़काता इन हवा के झोंकों को, मुझे बेसहारा करने को और उस जल रही लौ को बुझाने को। वो झोंके उसकी बात मानते हैं और हम दोनों के बीच में आने कि कोशिश करते हैं। मगर, उस लौ को बुझा नहीं पाते हैं। यह देखकर मौसम भी हैरान हो जाता है कि ये बच कैसे गये।

Burning fire (My last hope)

पर वो हार न माना, उसने एक बार फिर कोशिश की। और इस बार उन हवा के झोंकों ने तूफान का रुप ले लिया है। वो तूफानी मंज़र दिल को दहला रहा है और धीरे-धीरे वो तूफान हमारे करीब बढ़ता आ रहा है। इस पल मैं चाहता हूं कि मैं उस लौ को बस अपने अंदर समेट लूं, मगर बदकिस्मती मेरा यहाँ भी साथ कहां छोड़ेगी। अब जो कुछ भी करना है वो उस तूफान  को करना है। वो तुफान गुज़रता है हमसे होकर के, मगर सब बेअसर। यह देख मौसम और क्रोधित हो जाता है, जिसका परिणाम तूफान को भयंकर बवंडर में तब्दील कर देता है। ये बवंडर इतना विशाल है कि बड़े पैमाने के पठार भी उसके सामने टिक न पाएं। ज्यों-ज्यों बवंडर नजदीक आ रहा है, त्यों-त्यों डर बढ़ता जा रहा है। अब एक पल ऎसा आ गया जहां मैं खुद को कमजोर महसूस करने लगा। अब हम बवंडर के बीच में फंसे हुए हैं। हैरानी की बात यह है कि, वो पैंतरे सिर्फ आग बुझाने के लिए ही है। उनका असर मुझ पर न हो रहा था। शायद वो मेरी कमी जानते हैं। बवंडर अपने साथ मेरी बहुत सी अजीज चीजों को ले जाता है। मगर वो जलती हुई आग को अपने साथ न ले जा पाता है।
इतना सब कुछ होने और सहने के पश्चात अब मुझे हम पर गुमान होने लगता है, और होता भी क्यों न आखिरकार हमने डटकर उस मौसम का मुकाबला जो किया है। यह देखकर मौसम आश्चर्यचकित हो जाता है अब उसने जीतने के लिए नयी योजना बनाई जिसमें उसने एक शढ़यंत्र रचा। और इस छल का मुझे अंदाजा तक भी नहीं होता है। अब वो अपने कपट के अंतर्गत एक हल्के हवा के झोंके को भेजता है। और तब तक मैं उस गुमान में चूर हो चुका होता हूँ। जैसे ही वो हल्का झोंका उसके पास से होकर के गुज़रता है आग की लपटें डगमगा जाती हैं। जिसे देखकर मैं दंग रह गया हूँ। इससे पहले कि मैं कुछ सोचता, दूसरा हवा का हल्का झोंका उसे स्पर्श करके गुज़रता है। अब आग की लपटें तेजी से तितर-बितर हो जाती हैं। और धीरे-धीरे लौ बुझने लगती है, तपिश कम होने लगती है और आखिर में, आखिर में वो आग बुझ जाती है।
अब मेरी दुनिया फिर सुन्न सर्द अंधेरी रात में बदल जाती है। क्योंकि मेरे जीने का सहारा तो जा चुका था। सर्द ठंड का एहसास होना शुरू हो जाता है जो पल-पल बढता जाता है। अब सिर्फ चंद लम्हों का फासला है, मेरी ज़िन्दगी और मौत के बीच में। मेरा शरीर अब सुन्न पड़ गया है सिवाय मेरी सोच के। क्यों मौसम को हमारा साथ बर्दाश्त न हुआ। क्यों वो झोंके मुझसे मेरी उम्मीद छीन ले गये। और क्यों वो लौ मेरा साथ छोड़ गयी, वो भी उस मोड़ पर जहाँ मुझे उस पर पूरा गुमान हो गया था। यही वो सवाल है जिनका मुझे जवाब ढूंढना है। मगर वहां सिर्फ मेरा अधमरा शरीर है। मैं जवाब मांगू भी तो किससे? अब बस एक ही रास्ता है जिससे मुझे कुछ पता चल सकता है, सोच की दुनिया, ‘मेरी दुनिया’, ख्यालों की, विचारों की दुनिया। और मुझे जवाब भी मिले।
कि क्यों, इस मौसम को हमारा साथ रास न आया? “क्योंकि वो डरता है। वो डरता है, उसके अपने बनाए हुए नियमों के टूटने से। उसे डर है अपनी ताकत और हुकूमत को खोने का। वो चाहता है कि, हर एक उसके थोपे हुए नियमों के अनुसार चले अगर उसे जीना है तो। उसे डर है कि अगर हम एक दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं तो उसकी कदर कम हो जाएगी। ” मगर इसमें मौसम कि भी क्या गलती आखिर कौन अपनी सत्ता खोना चाहता है? और इन हल्के झोंकों का भी क्या कसूर, ये तो बस मौसम के नक्शे कदम पर चल रहे थे आखिर में उसकी बात मानना तो उनका धर्म है, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। और रही बात आग कि, तो उस से मैं किस बात के लिए ख़फ़ा जताऊं। वो भी तो उन हल्के हवा के झोंकों के एहसान तले दबी थी जिन्होंने उसे इक चिंगारी से आग का रूप दिया।
इस कदर, अब न किसी से गिला, और न ही कोई शिकवा रखकर मैं अब उस सुकून की रोशनी का इंतजार करने लगा। वो रोशनी, जो ज़रिया है उस ओर जाने का जहां न कोई बंदिश है, न ही कोई मजबूरी। और वो पल आ गया। मैं रोशनी के दूसरे छोर पर पहुंच गया। ये वो जगह नहीं जो इस सर्द अंधेरी दुनिया की तरह कठोर है। यहां तो सिर्फ वो तपिश है और मैं हूँ।

 

wp-1515223488180..jpg
A sun set scene

“शायद आप सोच रहे हैं कि ऊपर जो आपने पढ़ा वो क्या और किस बारे में है।
तो मैं बताता हूँ तुम्हें कि यह अस्ल में क्या है।
ये जो धीमी जली आग है ना, ये उसकी मोहब्बत है, मेरे लिए।
ये मौसम जो है ना, ये वो समाज है जिसे हार बर्दाश्त नहीं होती।
ये तेज़ हवा के झोंके उसी समाज के अंदर रहने वाले लोग हैं।
और ये तूफान…….. ये तूफान उन लोगों का विरोध है, कोशिश है।
और वो हल्के हवा के झोंके उस मोहब्बत के वालिद हैं।

©TheKushOfficial

लेखक – कुशदीप सिंह

 

4 thoughts on “तपिश

Add yours

Leave a comment

Create a website or blog at WordPress.com

Up ↑